in a different mood today, So just a few good ones from Chacha Ghalib: मिहरबां हो के बुला लो मुझे चाहो जिस वक़त मैं गया वक़त नहीं हूं कि फिर आ भी न सकूं. ज़हर मिलता ही नहीं मुझ को सितमगर वरना कया क़सम है तिरे मिलने की कि खा भी न सकूं. क़ासिद के आते आते ख़त इक और लिख रखूं मैं जानता हूं जो वह लिखेंगे जवाब में. And a different one: अपनी हस्ती ही से हो जो कुछ हो आगही गर नहीं ग़फ़लत ही सही. |
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