...क्योंकि ऐसा ही लिखा हुआ है

मैंने कभी लिखा था - "जीवन में बनी बनायी सोच ध्वस्त कर देने वाली घटनाएं होती रहनी चाहिए"

एक बातचीत में मैंने पूछा - ऐसे किसी व्यक्ति का नाम बताओ जिसने दुनिया बदलने के लिए कुछ अच्छा किया हो और वैसा उसने सब कुछ पहले से बनी बनायी विचार धारा से ही किया हो !

हो सकता है आपको एक दो नाम मिल भी जाएँ पर ये प्रश्न सुनते ही दिमाग में कौन से नाम आते हैं? वो लीक से हटकर चले थे या नहीं?

कुछ भी नया और अच्छा करने के लिए बनी बनायी अवधारणाओं के बाहर जाना ही पड़ता है। किसी ने ऐसा कह दिया या सारी दुनिया ऐसा ही करने को कहती है के परे. उनका विरोध आवश्यक नहीं पर ... उसको सन्दर्भ में समझ तो सकते हैं. मैंने सनातन दर्शन और आधुनिक मनोविज्ञान पर मघा पत्रिका में अनेकों लेख लिखे हैं. और मैं मानता हूँ कि सनातन दर्शन की खूबी इस बात में है कि उसमें कोई अंतिम सत्य नहीं. वो परम्परा शास्त्रार्थ की परम्परा रही है. जहाँ ऋषि नयी ऋचाएं जोड़ते रहते हैं. उसमें किसी को भी प्रश्न करने की परंपरा रही है. और आजीवन सीखने की. किसी पुस्तक में लिखे को देश, काल और परिस्थिति के अनुरूप समझने की परम्परा. मैंने उसे उस प्रकार पढ़ा है जैसे विज्ञान. जहाँ सत्य बदलते रहते हैं. नए नए रूप में परिभाषित होते रहते हैं. बीते कल के विज्ञान से आज के आविष्कार संभव नहीं होते। नए आविष्कार आज के विज्ञान से संभव नहीं होंगे। उत्तरोत्तर परिष्कृत होते रहना ही सत्य है. हम नित नए पहलुओं को देखते रहते हैं. कल का सत्य पूर्ण नहीं था अभी का सत्य भी कुछेक पहलु ही है... ये क्रमिक प्रक्रिया अनवरत चलती रहती है. मैक्स प्लैंक को १८७४ में किसी ने सलाह दी थी कि भौतिकशास्त्र पढ़ने का क्या फायदा कुछ बचा ही नहीं खोजने को ! आज की भौतिकी देखें तो पता चलेगा कि लगभग सब कुछ तो उसके बाद ही खोजा गया !

वास्तविक शिक्षा भी तो वो नहीं जो सब कुछ सिखाने का दावा करे परंतु वो है जो व्यक्ति को ऐसा बना दे कि जब किसी ऐसी बात से भी सामना हो जिसके बारे में न कभी सुना भी ना सोचा हो उसे भी कोशिश कर समझ ले। मैंने एक अन्य बातचीत में कहा कि सारे कौरव-पांडव प्रिस्टिजियस द्रोणाचार्य स्कूल के ग्रेजुएट थे. उसके बाद डिग्री लेकर घूमते रहे होंगे. दुर्योधन को भी था कि उसकी सेना में तो परशुराम स्कूल तक के गोल्ड मेडलिस्ट हैं! दो चार बार आर्यावर्त नाप आये हैं. पर अर्जुन के साथ ऐसा नहीं था. वो उसके बाद भी अनवरत लगा रहा. पशुपति अस्त्र और स्वर्ग से भी लौट आने वगैरह वगैरह के बाद अंतिम क्षण में भी उसे कुछ नया सीखना पड़ा. और लोग कह देते हैं हजारों साल पहले की किसी किताब से आगे कुछ नहीं? !