वही आँधी
Post date: Jan 23, 2011 1:31:50 AM
आज सुबह से कुछ अजीब सी बातें मन में चल रही हैं। और फिर ये बात आई दिमाग में:
आँधी ने तो अपना काम किया उसका क्या दोष ? जो जगमगाते से दीये थे वो बुझ गए और जो बुझी सी राख़ में दबी चिंगारी थी वो भभक उठी।
किसी और परिपेक्ष्य में बात आई थी दिमाग में पर फिर ये खयाल भी आ गया: जिन्हें लगता है आँधी में सारे दिये बुझ जाएँगे उन्हें शायद राख में दबी चिंगारी की खबर नहीं होती॰
अजीब है... जहां कुछ नहीं था बस एक बुझी हुई सी राख़ पड़ी थी वहाँ अब आग ही आग और जहां सब कुछ लगता था वहाँ सब खत्म। और दोनों का कारण एक ही।
(आज हिन्दी में टाइप करने के लिए गूगल के ट्रान्सलिटेरेशन की जगह माइक्रोसॉफ़्ट का इंडिक लैड्ग्वेज टूल डाउनलोड किया। पहले भी एक बार इस्तेमाल किया था पर अब ये फुलस्टॉप को खड़ी पाई बना देता है। अच्छा लगा। )