उठो लाल अब आँखें खोलो

Post date: Jun 7, 2011 3:44:35 AM

बचपन की एक कविता:

उठो लाल अब आँखें खोलो, पानी लायी मुँह धो लो

बीती रात कमल दल फूले, उनके ऊपर भँवरे झूले

चिड़िया चहक उठीं पेड़ों पर, बहने लगी हवा अतिसुन्दर

भोर हुई सूरज उग आया, नभ में हुई सुनहरी काया

आसमान में लाली छाई, ठंडी हवा बही सुखदाई

नन्हीं-नन्हीं किरणें आयी, फूल हँसे कलियाँ मुसकायी

इतना सुन्दर समय ना खोओ, मेरे प्यारे अब मत सोओ.

(ठीक-ठीक याद नहीं किसकी लिखी कविता है. शायद अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' की)