Post date: Jun 1, 2013 6:43:42 PM
... किन्तु विज्ञान की वृद्धि से भी मनुष्य की शाश्वत समस्याएं दूर नहीं हुईं। वह आज भी दुखी है। वह आज भी रोग, शोक, जरा और मरण का शिकार होता है तथा सबसे बड़ी बात तो यह है कि पहले जिन सुखों की लोग कल्पना भी नहीं कर सकते थे, उन सुखों के शैल पर बैठा हुआ मनुष्य भी चंचल, विषण्ण और अशांत है तथा उतना अशांत है जितना पहले के युग में, शायद ही कोई, रहा हो। अतएव चिंतकों पर यह प्रतिक्रिया हुई कि मनुष्य की समस्याओं का समाधान विज्ञान भी नहीं है, क्योंकि विज्ञान से शरीर चाहे जितना सुखी हो जाए, आंतरिक संतोष में वृद्धि नहीं होती, उलटे, दिनोंदिन उसकी मात्र घटती जाती है।
- रामधारी सिंह 'दिनकर' संस्कृति के चार अध्याय में महायोगी अरविन्द के सन्दर्भ में।