महादेवी वर्मा

Post date: Sep 11, 2014 6:06:35 PM

ट्वीटर/फेसबुक की वजह से कई बातें अनायास ही पता चल जाती हैं। जैसे ये कि आज महादेवी वर्मा की पुण्य तिथि है। जिन्हें निराला ने “हिन्दी के विशाल मन्दिर की सरस्वती” कहा था। फिर इन्टरनेट पर भटकते उनकी लिखी कुछ पसंदीदा पंक्तियाँ भी मिल गयी -

मैं नीर भरी दुःख की बदली !

विस्तृत नभ का कोई कोना,

मेरा कभी न अपना होना,

परिचय इतना इतिहास यही,

उमड़ी थी कल मिट आज चली.

---

हंस उठते पल में आद्र नयन

धुल जाता होठों से विषाद

छा जाता जीवन में बसंत

लुट जाता चिर संचित विराग

आँखें देतीं सर्वस्व वार

जो तुम आ जाते एक बार ।

---

यह ढुलक रही है याद

नयन से पानी नहीं !

मैं प्रिय पहचानी नहीं !

---

समय ठहरा है शिला-सा क्षण कहाँ उसमें समाते,

निष्पलक लोचन जहाँ सपने कभी आते न जाते,

वह तुम्हारा स्वर्ग अब मेरे लिए परदेश ही है ।

क्या वहाँ मेरा पहुँचना आज निर्वासन नहीं है ?

अश्रु यह पानी नहीं है, यह व्यथा चंदन नहीं है !

---

चित्रित तू मैं हूँ रेखाक्रम

मधुर राग तू मैं स्वर संगम

तू असीम मैं सीमा का भ्रम

काया छाया में रहस्यमय

प्रेयसि प्रियतम का अभिनय क्या!

तुम मुझमें प्रिय! फिर परिचय क्या

---

कौन बन्दी कर मुझे अब

बँध गया अपनी विजय में ?

कौन तुम मेरे हृदय में ?

पा लिया मैंने किसे इस

वेदना के मधुर क्रय में ?

कौन तुम मेरे हृदय में ?

---

तुमको पीड़ा में ढूँढा

तुम में ढूँढूँगी पीड़ा !

---

दीपक पर पतंग जलता क्यों

प्रिय की आभा में जीता फिर

दूरी का अभिनय करता क्यों

पागल रे पतंग जलता क्यों

---

सीमा ही लघुता का बंधन, है अनादि तू मत घड़ियाँ गिन,

मैं दृग के अक्षय कोशों से तुझमें भरती हूँ आँसू-जल!

सजल-सजल मेरे दीपक जल!

तम असीम तेरा प्रकाश चिर, खेलेंगे नव खेल निरंतर,

तम के अणु-अणु में विद्युत-सा अमिट चित्र अंकित करता चल!

सरल-सरल मेरे दीपक जल!

तू जल जल होता जितना क्षय, वह समीप आता छलनामय,

मधुर मिलन में मिट जाना तू उसकी उज्जवल स्मित में घुल-खिल!

मदिर-मदिर मेरे दीपक जल!

---

ऐसा तेरा लोक वेदना-

नहीं, नहीं जिसमें अवसाद,

जलना जाना नहीं, नहीं -

जिसने जाना मिटने का स्वाद।

क्या अमरों का लोक मिलेगा

तेरी करुणा का उपहार?

रहने दो हे देव ! अरे

यह मेरे मिटने का अधिकार।

---