हार की जीत - alternate ending

Post date: Mar 26, 2014 12:19:36 AM

Original post. And Full Story.

बाबा भारती - "मैं तुमसे इस विषय में कुछ न कहूँगा. मेरी प्रार्थना केवल यह है कि इस घटना को किसी के सामने प्रकट न करना"

....

"बाबाजी इसमें आपको क्या डर है?"

"लोगों को यदि इस घटना का पता चला तो वे दीन-दुखियों पर विश्वास न करेंगे"

"ऐसा नहीं होगा बाबा. मैं लोगों को इस घटना का अपना वर्जन सुनाऊंगा. बेहतर होगा आप इस घटना को किसी के सामने प्रकट न कीजियेगा." खडग सिंह ने मुस्कुराते हुए कहा.

बाबा भारती ने ठंडी सांस लेते हुए कहा - "तुमने मुझे किसी से कुछ कहने लायक छोड़ा ही कहाँ". बाबा भारती अभी अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाये थे.… खडग सिंह उनका घोडा लेकर पवन गति से उनकी आँखों से ओझल हो गया.

वही घोडा.... माँ को अपने बेटे और किसान को अपने लहलहाते खेत देखकर जो आनंद आता है, वही आनंद बाबा भारती को अपना घोड़ा देखकर आता था।