Gulzar on New York
Post date: Feb 6, 2012 4:04:58 AM
तुम्हारे शहर में ए दोस्त
क्यूं कर च्युंटियों के घर नहीं हैं
कहीं भी च्युंटिया देखी नहीं मैने
अगरचे फ़र्श पे चीनी भी डाली
पर कोइ चीटीं नहीं आयी
हमारे गांव के घर में तो आटा डालते हैं,
गर कोइ क़तार उनकी नज़र आये
तुम्हारे शहर में गरचे..
बहुत सब्ज़ा है, कितने खूबसूरत पेड़ हैं
पौधे हैं, फूलों से भरे हैं
कोई भंवरा मगर देखा नहीं भंवराये उन पर
तुम्हारे यहाँ तो दीवारों में सीलन भी नहीं है
दरारें भी नहीं पड़ती
हमारे यहाँ तो दस दिन के लिए परनाला गिरता है
तो उस दीवार से पीपल की डाली फूट पड़ती है
गरीबी की मुझे आदत पड़ी है
या तुम पर रश्क करता हूँ
तुम्हारे शहर की नकलें हमारे यहाँ
महानगरों में होने लग गयी है
मगर कमबख्त आबादी बड़ी बरसाती होती है
यहाँ न्यूयोर्क में कीड़े-मकोड़ों की भी कभी नस्लें नहीं बढ़ती
सड़क पर गर्द भी उड़ती नहीं देखी
मेरा गांव बड़ा पिछड़ा हुआ है
मेरे आंगन के बरगद पर
सुबह कितनी तरह के पंछी आते हैं
वे नालायक, वहीं खाते हैं दाना
और वहीं पर बीट करते हैं
तुम्हारे शहर में लेकिन
हर इक बिल्डिंग, इमारत खूबसूरत है, बुलन्द है
बहुत ही खूबसूरत लोग मिलते हैं
मगर ए दोस्त जाने क्यों..
सभी तन्हा से लगते हैं
तुम्हारे शहर में कुछ रोज़ रह लूं
तो बड़ा सुनसान लगता है..
तुम्हारे शहर में कुछ रोज रह लूँ तो
अपना गाँव हिंदुस्तान मुझको याद आता है ! -गुलज़ार