ग़ालिब

Post date: Jan 21, 2011 11:43:37 PM

in a different mood today, So just a few good ones from Chacha Ghalib:

मिहरबां हो के बुला लो मुझे चाहो जिस वक़त

मैं गया वक़त नहीं हूं कि फिर आ भी न सकूं.

ज़हर मिलता ही नहीं मुझ को सितमगर वरना

कया क़सम है तिरे मिलने की कि खा भी न सकूं.

क़ासिद के आते आते ख़त इक और लिख रखूं

मैं जानता हूं जो वह लिखेंगे जवाब में.

And a different one:

अपनी हस्ती ही से हो जो कुछ हो

आगही गर नहीं ग़फ़लत ही सही.