आदतें

Post date: Apr 7, 2016 8:23:36 PM

कुछ चीजों की हमें ऐसी आदत हो जाती है जैसी... हाथ अपने आप फोन पर चला जाना। बिन सोचे। बिन जरूरत। जैसे अंधेरे में भी खाना खाना हो तो हाथ मुंह में ही जाता है ढूँढना नहीं पड़ता. कभी ऐसा हो सकता है कि अंधेरे में खाते हुए किसी का हाथ नाक या कान की तरफ चला जाये? फोन के बटन पर हाथ चले जाना वैसी ही आदत है। उसके बटन ढूँढने नहीं पड़ते। वैसे ही रिमोट देखते ही लोग टीवी चला देते हैं।

पिछले दिनों मैं एक होटल में रहा... पूरे एक सप्ताह बाद जब वहाँ से चलना हुआ तो विदेश में कमरे की तरह एक बार लौट कर देखा तो ख्याल आया -

मैंने वहाँ रखी टीवी चलाया क्यों नहीं? एक बार भी नहीं !

...वो मेरी आदत का हिस्सा ही नहीं ! फोन-इंटरनेट हैं आदत का हिस्सा। याद नहीं पिछले कुछ सालों में जब एक भी दिन बिना फोन या इंटरनेट के गुजरा हो। उसी तरह कभी टीवी देखा हो ये भी याद नहीं।

लगता ही नहीं देखने की चीज है ! रिमोट से पहचान ही नहीं।

मैंने ये बात किसी से कही तो उन्हें बहुत अजीब लगा... और मुझे उनका अजीब लगना अजीब लगा।

उन्होने मुझसे पूछा - तुम्हारा वक़्त कैसे कटता है ? बोर नहीं होते?

और मुझे लगा - आपको वक़्त मिलता कैसे है टीवी देखने के लिए? और बोर होने के लिए?

अपनी-अपनी आदतें !

टीवी देखने और बोर होने दोनों का ही मुझे ना आदत है न अनुभव। कई चीजों का अनुभव नहीं होना बहुत अच्छी बात है। जैसे मैं नहीं चाहता कि कभी बोरियत अनुभव हो...

वैसे चाहने से हो जाना होता तो ... :)