छोटी सी बात
Posted on 4/17/2019
अच्छा लगता है जब ख़ुद की स्वतंत्र रूप से सोची हुई बातें कहीं और पढ़ने को मिलती हैं। एक तरह से पुष्टि होती है कि हम ऐसा सोचने वाले अकेले नहीं।
पर - विचार जिसे कभी लिखने का सोचा हो पर लिखा कभी नहीं। वो कहीं और पढ़ने को मिले वो भी किसी प्रसिद्ध सी जगह तो जो लगता है उसे अच्छा तो नहीं कह सकते। लगता है कुछ छूट गया। हम लिख सकते थे पर नहीं लिखा। कर सकते थे नहीं किया। अब नहीं लिख सकते - चुराया हुआ लगेगा। ख़ुद को ही। ऐसा इतनी बार हुआ है कि कभी कभी मुझे ऐसा भी लगा है कि पढ़ना ही कम कर दूँ! लेकिन उससे क्या होगा लिखना तो मेरा लगभग बंद ही है। लेकिन सोचता हूँ कि जब लिखूँगा कभी तब पढ़ना बंद करके। ये कभी कभी एकदम छोटी बातों के लिए भी होता है। जैसे मैंने अपने इस वेब्सायट पर ही लिखा है। पहली लाईन -
So Finally you are here !
believe me... I wrote this only for you... I always knew that one day you will come here…
'I wrote this for you’ लिख कर अच्छा लगा था और लिखने के कुछ साल बाद पता चला कि लिखना व्यर्थ नहीं था और बताने वाले से इसे सुनकर बहुत ख़ुशी हुई थी - बहुत। बातों को लिख देना चाहिए। क्योंकि विचार एक तो खो जाते हैं। ख़ूबसूरत से ख़ूबसूरत एहसास और विचार धूमिल हो जाते है। मन की अवस्था वही नहीं रहती। और अचहकी हो सकती है - बुरी भी पर वैसी ही नहीं। परंतु ये भी है कि ये जानते हुए भी मैं नहीं लिख पा रहा। कितना कुछ तो है लिखने को!
ख़ैर - बात ये थी कि जब भी ख़ूबसूरत किताब 'I wrote this for you’ देखता हूँ तो लगता है अच्छा है जो ये मैंने लिख दिया था वेबसाइट पर। किताब के पहले। नहीं तो किताब देख लगता ही लगता सोचा तो मैंने भी था लेकिन लिखा नहीं ! अब इसके उलट अनुभूति होती है ! अच्छी।