Saliency bias

Post date: Aug 14, 2016 6:36:19 PM

सब कुछ बदलता है - सबकुछ। और हम सभी ये जानते हैं. हम सोचते भी हैं कि चीजें बदलेंगी। पर हम जब भी सोचते हैं - हम अक्सर सिर्फ वर्स्ट केस सोचते हैं. ज्यादा से ज्यादा क्या होगा? पर वास्तव में ऐसा कुछ होता है जो हमने शायद ही कभी सोचा होता है - अच्छा, बुरा - जो भी हो.

मैंने कुछ सालों पहले एक अपार्टमेंट किराए पर लिया था - व्यू के साथ. ठीक सामने एक बहुत बड़ी पार्किंग यानी बड़ी सी खाली जगह, उसके पीछे कुछ घर... उसके पीछे समुद्र, पार्क और स्टेचू ऑफ़ लिबर्टी ! समुद्र, पार्क और लिबर्टी को व्यू के नाम पर मूझे बेचा गया था. २४वे तल्ले पर अपार्टमेंट था. सेल्समैन ने जब सब कुछ दिखा दिया तो मैंने पूछा था - इस खाली जगह पर दो सालों में कोई बिल्डिंग तो नहीं बन जायेगी? उसने बताया कि कई सालों से ये जगह बिल्डर्स की चहेती रही है पर वो गारंटी ले सकता है कि दो क्या अगले दस सालों में भी कुछ नहीं बनने जा रहा वहां ! वो गलत नहीं था. कुछ नहीं बना.

पर... छः महीने बाद - उसके खाली जगह के पीछे एक नयी बिल्डिंग बनने लगी. १० महीने बीतते बीते वो आधा व्यू खा गयी ! आधा क्या लगभग पूरा ही. मैंने सोचा था कि व्यू जा सकता है. पर मेरे अपार्टमेंट और व्यू के बीच में जितनी जगह थी उसमें से मुझे सिर्फ ठीक सामने की खाली जगह ही दिखी। मैंने जो सवाल सैल्समैन से पूछा था मनोवैज्ञानिक उसे सैलीऐंसी बायस (saliency bias) कहते हैं. यानि जो बड़ा, ड्रामाटिक और स्पष्ट दीखता है वो हमारे दिमाग में इस कदर घर कर जाता है कि हम बाकी बातों और कारणों की तरफ ध्यान ही नहीं देते कि ऐसा भी हो सकता है. और ज्यादातर वही बातें हो जाती हैं ! माने ...जीने के लिए सोचा ही नहीं दर्द संभालने होंगे टाइप :) और जिन्हें पता होता है कि सैलीऐंसी बायस क्या है वो इस बायस के पर नहीं होते. बायसो का ज्ञान - शिकारी आएगा जाल बिछाएगा टाइप ज्ञान होता है. दूसरों को ज्ञान देने के लिए, समझाने के लिए. ब्लॉग लिखने के लिए :)