बुझने के बाद जलना गवारा नहीं किया

Post date: Oct 13, 2014 6:00:05 PM

शहरयार की कुछ रचनाएं पढ़ते हुए अचानक लगा “ये ऐसे ही तो नहीं लिखा जा सकता!”. कुछ रचनाएं पढ़कर लगता है कि लिखने वाले ने पन्नों पर भावनाएं उड़ेल दी हैं. खुद बिन महसूस किये ऐसे लिखना किसी के लिए भी मुझे संभव नहीं लगता. फिर ऑनलाइन भटकते हुए शहरयार के व्यक्तिगत जीवन के बारे में कुछ पढ़ने को मिला - बहुत ही कम. पर इतना जरूर पता चल गया कि उनका वैवाहिक जीवन सफल नहीं था. उनकी एक्स-वाइफ (खुद भी साहित्यकार) ने कहा कि “शहरयार एक अच्छे शायर जरूर हो सकते हैं, अदब के आला-तरीन एजाज भी मिल सकते हैं लेकिन यह जरूरी नहीं कि वे एक बा-अदब इंसान भी हों. वे एक अच्छे शौहर और एक अच्छे बाप नहीं बन सके.

मेरे साथ ये पहली बार नहीं हुआ जब ऐसा सोचकर कुछ ढूंढा हो और ठीक ऐसी ही बात पता चली हो. ऐसे उदहारण भरे पड़े हैं. पर अभी तक मैं ये समझ नहीं पाया कि ऐसे एकांत-तन्हा-अनुभव से ऐसी ‘भावना उड़ेल’ रचनात्मकता आती है या ऐसे रचनात्मक-कलाकार-लेखक ही वैसे भावनात्मक-स्पायरल में चले जाते हैं कि वो अंततः बेमेल जिंदगी से होते हुए अकेलेपन का जीवन जीने लगते हैं. ‘कॉज-इफ़ेक्ट’ का पता नहीं… पर आदर्श-गुरूर के सम्मिश्रण सा कुछ तो है जो ऐसे लोगों में होता है !

ऐसे अलग हो गए रिश्तों में शायद गलती किसी की नहीं होती… गलत की जगह मैं ‘कुछ ज्यादा ही अच्छा’ कहना पसंद करता हूँ. क्यूंकि समझौता न करना और सीने में जलन, आँखों में तूफ़ान सा हर शख्स पाल भी तो नहीं सकता। शायद भगवान ऐसे एक ‘वोयड’ सबकी जिंदगी में देते हों ! शहरयार ने ही लिखा है — “कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता। कहीं जमीं तो कहीं आसमां नहीं मिलता”. फिर गलती क्या मानी जाय सियाव एक जिद और गुरूर के सिवा…. सब कुछ परफेक्ट ही तो होता है. खुद देखा है मैंने अलग हुए लोगों को एक दूसरे के बारे में सिर्फ और सिर्फ अनवरत अच्छी बातें ही कहते हुए ! फिर अलग ही क्यों हुए का जवाब भी नहीं होता उनके पास.

ऑनलाइन ही शहरयार का अपनी पत्नी के बारे में कहा ये भी मिला -

जिंदगी में उसूल रहा है मेरा। अगर मैं बचपन में किसी खास सिचुएशन या शक्ल में साइकिल से गिरा हूं तो दूसरी बार उस शक्ल में कभी नहीं गिरा। खेल में भी..हॉकी में भी, जो गलती एक बार हो जाती थी, पूरी कोशिश होती थी कि वो गलती दूसरी बार न हो। इस मामले में बहुत पर्टिकुलर हूं।

एक स्थिति में जिससे धोखा, नुकसान या पछतावा हो गया या फिर किसी की तारीफ से खफा होकर कोई ऐसा कदम उठा लिया, जिसका बाद में पछतावा हुआ हो..फिर बहुत कोशिश की कि वह दोबारा न हो।' बड़े रचनाकारों के असफल दांपत्य जीवन पर बात छिड़ी तो शहरयार रौ में आ गए,'खुद मेरी समझ में नहीं आया। वह सब क्यों हुआ, कैसे हुआ? इसलिए कि मेरी जो कमियां-खराबियां थीं, वो सब मैं उनको बता चुका था।

हमने शादी ही इस शर्त पर की थी कि वो इन कमजोरियों को बर्दाश्त करेंगी। नहीं-जिन चीजों को लेकर अलग हुए, उनका शायरी से ताल्लुक नहीं है। ..हां ताश खेलना, शराब पीना, देर तक घर से बाहर रहना..। जी, शुरू से ही था ये सब। बाद में पता नहीं क्या हुआ? ..मैंने उन्हें नहीं छोड़ा। उन्होंने कोर्ट से डायवोर्स ले लिया। मैंने उन्हें कंटेस्ट नहीं किया। मैं न कोई सफाई पेश करता हूं, न उन्हें भला-बुरा कहता हूं। यूं कहूं कि मैं खुद अलग हुआ। जब लगा कि साथ रहना अब मुश्किल है तो अलग हो गया..।' वो तनिक रुकते हैं, फिर चालू हुए, 'फिर मेरी जिद भी थी। ..शायद उन्हें गलतफहमी थी कि मैं उनके बगैर जिंदा नहीं रह सकता। बच्चों के साथ की सारी तस्वीरें फाड़ डालीं।

..मेरे मिजाज में एक जिद है। ये बच्चों को भी पता है कि पापा जब जिद करते हैं तो फिर..' शायद बीवी नजमा भी मनाने के इंतजार में ही वक्त गुजारती रहीं। शहरयार ने दुनिया छोड़ दी तो भी नहीं आईं!

और फिर ये -

बुझने के बाद जलना गवारा नहीं किया, हमने कोई भी काम दोबारा नहीं किया।

अच्छा है कोई पूछने वाला नहीं है यह, दुनिया ने क्यों ख़याल हमारा नहीं किया।

जीने की लत पड़ी नहीं शायद इसीलिए, झूठी तसल्लियों पे गुज़ारा नहीं किया।

यह सच अगर नहीं तो बहुत झूठ भी नहीं, तुझको भुला के कोई ख़सारा नहीं किया। (ख़सारा = बुरा/नुकसान)